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उम्मीद

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 उम्मीद  उम्मीद, एक ऐसा खतरनाक शब्द जो लगभग सभी के जीवन को प्रभावित करता है।  हम कभी न कभी अपने जीवन के हर एक इंसान से उम्मीद करते है चाहे वो एक छोटी सी चाय पीने की उम्मीद ही क्यों न हो और लगभग हर एक आदमी की उम्मीद टूटती है।  सही माने तो दुसरो से उम्मीद करना ही गलत है।  हमे ये पता है की उम्मीद की है कहीं न कहीं टूटेगी ज़रूर लेकिन फिर भी करते है।  सोंचने की बात ये है की हम अपने से कोई उम्मीद नहीं करते क्युकी अगर टूट गई तो तकलीफ बहुत होगी।  लेकिन हमने कभी ये तो ध्यान ही नहीं दिया की अगर खुद से की गई उम्मीद सफल हो गई तो क्या होगा।   आज के वक़्त जहाँ भी नज़र जाये आप देखो हर जगह उम्मीद है एक माता पिता को अपने बच्चे से उम्मीद है की वो उनके सपने पूरे करेगा, बच्चे को माता पिता से उम्मीद है की वो उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे।  नौकरी करने वाले को अपनी कंपनी से उम्मीद है की वो उसकी सैलरी बढ़ाएंगे कंपनी को अपने कर्मचारी से। लेकिन किसी को खुद से उम्मीद नहीं है।   कोरोना काल में सबने सरकार, पुलिस प्रशासन से उम्मीद की, की वो उनका ध्यान रखेंगे लेकिन खुद अपने ध्यान रखेंगे इसकी उम्मीद नहीं की।  मज़ाक है ना ?

ऐसा क्यों ..

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 ऐसा क्यों स्वागत है आप सभी का आज के ब्लॉग में जिसका नाम है ऐसा क्यों।  बिल्कुल सही शीर्षक है आज का, हम हमेशा दुसरो से  पूंछते है ऐसा क्यों आज खुद से ऐसा क्यों पूंछ  कर देखते है शायद हमारे सवालों के जवाब मिल जाए।  हमे अपना देश बाहर के देश जैसा साफ़ सुथरा चाहिए लकिन हम रख नहीं पाते ऐसा क्यों ? दूसरे सरकारी कर्मचारियों को बोलते है की वो रिश्वत ले रहा लकिन खुद के काम के लिए रिश्वत देते है ऐसा क्यों? बच्चो को सिखाते है गाली देना बुरी बात, झूठ बोलना बुरी बात लेकिन वो सारे काम हम करते है ऐसा क्यों? हमारी बहिन बेटियों से कोई बत्तमीज़ी करे तो बर्दाश्त नहीं और वो गलत होता है, लेकिन  अगर वही काम हम करे तो सही ऐसा क्यों?  ऐसे न जाने कितने सवाल है जो हम खुद से कर सकते है लेकिन करते नहीं है क्युकी हिम्मत ही नहीं होती।  क्युकी पता होता है न गलती हमारी होगी और ये तो हम सब को पता है इस दुनिया में किसी को भी अपनी गलती गलती नहीं लगती।  हममें से कोई भी बिलकुल परफेक्ट नहीं होता ये बात भी सबको पता है।  क्या हम सच में अपने आपको एक बेहतर इंसान नहीं बना सकते? हमे सही क्या है गलत क्या है इसकी परख है लेकिन सिर्फ