दुनिया के अजीब रंग

 दुनिया के अजीब रंग 


दुनिया कितनी बदल गई है इस बात से तो सभी परिचित है लेकिन समझना नहीं चाहता कोई।  इंसान का व्यवहार तौर तरीका सबमे बदलाव आगया।  पहले का वक़्त देखा जाये तो इंसान खुश रहते थे लेकिन आज सभी एक न खत्म होने वाली एक अनंत दौड़ का हिस्सा मात्र बन कर रह गए है।  तरक्की करना अच्छी बात है लेकिन ऐसी तरक्की किस काम की जो इंसान के अंदर से इंसानियत खत्म कर दे।  



पहले नौकरी एक जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण थी लेकिन आज तो कुछ और ही देखने को मिलता है।  इंसान के पास अपनों के साथ वक़्त बिताने तक के लिए वक़्त नहीं है क्यों ? फिर अपने अंतिम समय में उसी इंसान को सब याद आता है की अरे अपने मित्र बंधुवो से तो मिल ही नहीं पाए पूरा जीवन मशीन की तरह काम करने में निकाल दिया और खुद का जीवन जीना ही भूल गए।  दुनिया बड़ी अजीब है एक छोटा सा जीवन मिलता है और उसमे भी हमारा हक़ नहीं होता।  



अब लोग आपस में ही प्रतिद्वंदी की भाति व्यवहार करते है और अंतिम छड़ तक उन्हें नहीं पता होता है की प्रतिद्वंदिता थी तो किस चीज की थी।  आज का युग अर्थप्रधान युग है आज के समय में भावनाओ की कोई कीमत नहीं है, कीमत है तो सिर्फ चाँद पैसो की।  एक छात्र परेशान है क्युकी उसे परीक्षा उत्तीर्ण करनी है, एक नौकरी करने वाला व्यक्ति परेशान है की उसे पैसो की चाह है ये सारे काम बिना परेशानियों के भी तो हो सकते है।  आज से करीब 20 - 30 साल पहले भी लोग पैसे कमाते थे और खुश थे।  आज इंसान का सिर्फ बाहरी आवरण ही सुखी प्रतीत होता है भीतर से इंसान परेशान ही है।  



थोड़ी सी इंसानियत, थोड़ा सा अपने आपको समय देकर तो देखिये आपको बहुत अच्छा लगेगा।  हम पूरी दुनिया एक बार में तो नहीं बदल सकते लकिन शुरुवात खुद से तो कर ही सकते है न।  कठोर बन कर आपको कोई पुरस्कार नहीं देगा इससे अच्छा है की आप सबसे अच्छा व्यवहार करे।  दुनिया के अजीब रंग में खुद को न खोने दे क्युकी आपका खुद का भी एक रंग है।  एक अनंत दौड़ का हिस्सा न बन कर भी आप बहुत कुछ अच्छा हासिल कर सकते है।  


"ज़िन्दगी में ये मायने नही रखता कि आपने ज़िन्दगी को कितना जिया, बल्कि मायने ये रखता है कि आप ज़िन्दगी में कितना खुश रहे."


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