लाउडस्पीकर

 लाउडस्पीकर 

आज कल ऐसी चीजे चर्चा का विषय बन गई है जिनके बारे में आमतौर में सोंचा नहीं जाता था।  अब ये तो लाउडस्पीकर ने भी नहीं सोंचा होगा की एक दिन उसके चर्चे पुरे भारतवर्ष में होंगे।  हो भी क्यों न काम जो ऐसा किया है।  भगवान् के लिए प्रार्थना, अल्लाह के लिए अज़ान ये सब तो मन के भीतर होनी चाहिए थी क्युकी भगवान्, अल्लाह ने तो कभी नहीं कहा न की जब तब ज़ोर ज़ोर से लाउडस्पीकर में मुझे नहीं याद करोगे मैं तुम्हारी नहीं सुनूंगा। भगवान् की की भक्ति तो मन से होती है न की चिल्ला कर।  इसे राजनैतिक स्वरुप देना उचित नहीं है।  



मस्जिदों में मंदिरो में या अन्य देव स्थलों में तो इनसभी चीजों का उपयोग ही नहीं है, अगर इसका उपयोग परिसर में भजन इत्यादि के लिए करते है तो ये सुनिश्चित करना चाहिए की उसकी आवाज़ परिसर के बाहर न जाये क्युकी हो सकता है कोई विद्यार्थी अध्ययन कर रहा हो, किसी अस्वस्थ व्यक्ति को तेज़ आवाज़ से परेशानी हो रही हो और ईश्वर, अल्लाह तो ये कभी नहीं चाहेंगे की उनकी प्रार्थना किसी को कष्ट देकर हो।  


आज के सोशल मीडिया के वक़्त में व्यक्ति को नई चीजे सीखने में ध्यान देना चाहिए लेकिन आज भी हम ऐसी बातो को अपने मनोरंजन के लिए राजनैतिक स्वरुप देने में कोई कसर नहीं छोड़ते।  अपने आराध्य को मन्ना उनकी पूजा करना बहुत ही पवित्र काम है लेकिन किसी को तकलीफ न हो ये ध्यान देना भी हमारा कर्त्तव्य है।  और इसके पीछे हिंसा करना ये तो बिलकुल भी उचित नहीं है।  आये दिन हम ऐसी घटनाओ से रूबरू होते है धर्म के नाम पर जातीय हिंसा करना इसकी अनुमति तो भगवान् ने किसी ग्रंथ में नहीं दी।  आज के वक़्त में आपके और आपके आराध्य देवी देवता के बीच का माध्यम लाउडस्पीकर से की गई प्रार्थना नहीं बल्कि सच्चे मन से शान्ति में की गई प्रार्थना होनी चाहिए।  

जातीय हिंसा करके आज तक शायद ही उसे कुछ हासिल हुआ हो।  इनसब में कुछ नहीं रखा इनसब से ऊपर उठकर इंसानियत को महत्व देना ज्यादा लाभप्रद होगा।  


"प्रार्थना जो केवल स्वयं के लिए की जाए वह कभी सफल नहीं होती, परन्तु जो प्रार्थना सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए की जाए ईश्वर उस प्रार्थना को ज़रूर सुनता है।"


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